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सब ख़ुद को तलाश करते हैं -आदित्य चौधरी

सब ख़ुद को तलाश करते हैं
मुझे पाकर
कोई मुझे क्यूँ नहीं ढूंढता
मेरे पास आकर

जादुई आइने की तरह
मुझे रखा जाता है पास में
कि पूरे कराऊँगा मैं सारे सपने…
दिखाऊंगा वही
जो देखना चाहते हैं वो
अपने आप में

आह ! कैसा लगता होगा मुझे
कभी तो कोई ऐसा भी होता
जो, मेरे सपनों
और मेरे वजूद के बारे में भी
संजीदा होता

जैसे मैं कोई डिक्शनरी
कोई संदर्भ पुस्तक
ज़िन्दगी पढ़ाने वाली किताब

जिसमें हर बात का हाज़िर है जवाब
अरे! दीमक खा गई है
अब इस किताब को
मुझे मेरी ज़िन्दगी का भी तो
हिसाब दो

मेरे दिल को लेकर अजीब ख़याल
कि
अरे ! तुम तो सब सह लोगे…
-कैसे सह लेता हूँ कभी सोचा है ?
पीड़ा से विराट होने के लिए
मैं क्या-क्या मूल्य देता हूँ...
हर बार टूटता-बिखरता हूँ
लेकिन हँस देता हूँ।

वो सूखे फूल, वो लम्हे
वो कपड़े, वो पर्दे
किसे देदूँ ?
और तस्वीरें ?
ख़त
यादें
सपने
...


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