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लेकिन एक टेक और लेते हैं
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काम की खुन्दक
बस एक चान्स
मैं तो एक भूत हूँ
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गुड़ का सनीचर
ज़माना
राज की नीति
कौऔं का वायरस
छापाख़ाने का आभार
बात का घाव
चिल्ला जाड़ा
अपनी बात
इन मंजिलों को शायद
हर शख़्स मुझे बिन सुने
कितना बेदर्द और तन्हा
मौसम है ये गुनाह का
मैं गुम हूँ
तुम क्षमा कर दो उन्हें भी
पीते हम हैं
क्यों विलग होता गया
जो भी मैंने तुम्हें बताया
हमें तो याद नहीं
हरदम याद आती है
क्यूँ करे
यह स्तुति अब तुम बंद करो
ये जो मिरी आंखों में
सब ख़ुद को तलाश करते हैं
कि तुम कुछ इस तरह आना
आसमान को काला कर दे
फ़र्क़ क्या होगा
फूल जितने भी
इमरान का बस्ता
मैं किसान हूँ भारत का
क्या यही है मेरी शिकस्त ?
मैं समय हूँ, काल हूँ मैं
निशाचर निरा मैं
तू जुलम करै अपनौ है कैं
ये तो तय नहीं था कि
मत करना कोशिश भी
मैं हूँ स्तब्ध सी
दिलों के टूट जाने की
यहाँ बेकार में
एक ज़माना था
अपने आप पर
मिट्टी में मिलाया जाए
क़ायम सवाल रहता है
दिल का सौदा दिल से करना
इक सपना बना लेते
क्या यही तुम्हारा विशेष है?
सुन ले
हँस के रो गए
कुछ नहीं कहा
ये मुश्किल बात होती है
दिल को ही सुनाने दो
1857
हर शाख़ पे बैठे उल्लू से
ये वक़्त कह रहा है
लहू बहता है
जीवन का अहसास
एक बात तो कॉमन है
आँखों का पानी
सब चलता है
जैसे संसार हमारा है
एक बार तो पूछा होता
तख़्त बनते हैं
बहुत फ़ज़ीता है
फ़साने भर को
फ़ासले मिटाके
वक़्त बहुत कम है
अपना भी कोई ख़ाब हो
तुमको बताने का क्या फ़ायदा
मर गए होते
इससे तो अच्छा है
मेरा है वास्ता
जश्न मनाया जाय
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ
ये सूरज रोज़ ढलते हैं
नहीं बीतता प्यार
यूँ तो कुछ भी नया नहीं
कोई साहिलों से पूछे
भारत को स्वयं बनाओ
जागोगे नहीं तो
ऐसे ही उमर गई
भार्या पुरुषोत्तम
और जाने क्या हुआ उस दिन
रात नहीं कटती थी रात में
प्यार की दरकार
ये दास्तान कुछ ऐसी है
वो सुबह कभी तो आएगी
छूट भागे रास्ते
अब मुस्कुरा दे
ये मुमकिन नहीं
जीवन संगिनी
उल्लू की पंचायत
पत्थर का आसमान
इस शहर में
इक सपना बना लेते -आदित्य चौधरी
दिल का सौदा दिल से करना -आदित्य चौधरी
दिल को ही सुनाने दो -आदित्य चौधरी
आदित्य चौधरी रेडियो वार्ता दुबई
हिंदी दिवस 2013 रेडियो वार्ता
जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी
मेरा है वास्ता -आदित्य चौधरी
भारतकोश प्रस्तुतिकरण
विश्व हिन्दी सम्मान
आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक अपडेट्स
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