पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हर शाख़ पे बैठे उल्लू से<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हर शाख़ पे बैठे उल्लू से<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
{| width="100%" 
+
<center>
|-valign="top"
+
<poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;">
| style="width:35%"|
+
| style="width:35%"|
+
<poem style="color=#003333">
+
 
हर शाख़ पे बैठे उल्लू से,  
 
हर शाख़ पे बैठे उल्लू से,  
 
कोई प्यार से जाके ये पूछे  
 
कोई प्यार से जाके ये पूछे  
पंक्ति 40: पंक्ति 37:
 
           और नई ज़िन्दगी गाएगी
 
           और नई ज़िन्दगी गाएगी
 
</poem>
 
</poem>
| style="width:30%"|
+
</center>
|}
+
 
|}
 
|}
  

08:30, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
हर शाख़ पे बैठे उल्लू से -आदित्य चौधरी

हर शाख़ पे बैठे उल्लू से,
कोई प्यार से जाके ये पूछे
है क्या अपराध गुलिस्तां का ?
जो शाख़ पे आके तुम बैठे !

          कितने सपने कितने अरमां
          लेकर हम इनसे मिलते हैं
          बेदर्द ये पंजों से अपने
          सबकी किस्मत पे चलते हैं

उल्लू तो चुप ही रहते हैं
हम दर्द से हरदम पिसते हैं
वो बोलेंगे, इस कोशिश में
हम चप्पल जूते घिसते हैं

          ना शाख़ कभी ये सूखेंगी
          ना पेड़ कभी ये कटना है
          जब भी कोई शाख़ नई होगी
          उल्लू ही उसमें बसना है

इस जंगल में अब आग लगे
और सारे उल्लू भस्म करे
फिर एक नया सावन आए
और नया सवेरा पहल करे

          तब नई कोंपलें फूटेंगी
          और नई शाख़ उग आएगी
          फिर नये गीत ही गूँजेंगे
          और नई ज़िन्दगी गाएगी


टीका टिप्पणी और संदर्भ

सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: [email protected]   •   फ़ेसबुक