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क्यूँ करे -आदित्य चौधरी

लायक़ नहीं हैं हम तेरे, तू प्यार क्यूँ करे
कोई गुल भला, ख़िज़ाओं से दीदार क्यूँ करे[1]

किस्मत ही दिल फ़रेब थी, तू बेवफ़ा नहीं
बंदा ख़ुदा से क्या कहे इसरार क्यूँ करे[2]

जब चारागर ही मर्ज़ है तो किससे क्या कहें[3]
शब-ए-हिज़्र, अब रह-रह मुझे बीमार क्यूँ करे[4]

ख़ामोश आइने को अब इल्ज़ाम कितने दें
तू ज़िन्दगी की सुबह यूँ बेज़ार क्यूँ करे

परछाइयाँ भी खो गईं ज़ुलमत के साए में[5]
तू आ के, मेरा ज़िक्र ही बेकार क्यूँ करे


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ख़िज़ा=उजाड़, पतझड़
  2. इसरार=ख़ुशामद
  3. चारागर=डॉक्टर
  4. शब-ए-हिज़्र=विरह की रात
  5. ज़ुलमत=अंधेरा

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